Published September 6, 2009 | Version v1
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काले धंघे की रक्षक

Creators

  • 1. Joshi

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हिंदी के प्रतिष्ठित पत्रकार प्रभाष जोशी ने यह लेख प्रमोद रंजन के लेख 'विश्वास का धंधा' के विरोध में लिखा था। प्रमोद रंजन का लेख हिंदी दैनिक जनसत्ता के 30 अगस्त, 2009 अंक में  संपादकीय पृष्ठ पर छपा था। प्रभाष जोशी जनसत्ता के संस्थापक-संपादक थे। जिस समय प्रमोद रंजन का लेख प्रकाशित हुआ था, उस समय जनसत्ता के संपादक ओम थानवी थे। प्रमोद रंजन का उक्त लेख उनकी पुस्तिका 'मीडिया में हिस्सेदारी' में संकलित था और उस पुस्तिका की भी बहुत चर्चा उन दिनों हुई थी।

प्रभाष जोशी उन दिनों पेड न्यूज के विरोध में अभियान चला रहे थे। उनका तर्क था कि पैसा देकर खबर छपवाने से पत्रकारिता की मर्यादा भंग हो रही है प्रमेाद रंजन ने उनके इस अभियान की सराहना की थी, लेकिन यह सवाल उठाया था कि भारतीय अखबारों के न्यूज रुमों पर ऊंची जातियों का कब्जा है और वरिष्ठ पत्रकार चुनाव के समय जाति-धर्म और मित्र-धर्म का निर्वाह करते हैं, जिससे दलित-पिछड़े तबकों से आने वाले राजनेताओं के साथ् न्याय नहीं होता।

प्रभाष जोशी पर उन दिनों जातिवाद करने का आरोप लग रहा था।  प्रमोद रंजन खिलाफ इस कटु लेख लिखने के कारण उनका ब्राह्मणवाद और स्पष्टता से सामने आ गया था। बाद में प्रमोद रंजन ने उनके इस लेख का उत्तर 'महज एक बच्चे की ताली पर' शीर्षक लेख लिख कर दिया था।

 

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काले धंधे के रक्षक प्रभाष जोशी.pdf

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